शनिवार, 20 अगस्त 2011

रंग ए फितरत

दिल को मेरे वो क्या संभालेंगे   
मुहाने पर दिल जो अपना  रखते है !

डोर  रिश्तों की  वो क्या थामेंगे
हाथों में जो छुरी रखते है !

'दामनगीर' हो , रखे सिर अब किस काँधे पर
यहाँ तो हर सिर की नीलामी रखते है !

कर ले दिल्लगी खुद  -खुद से
'मतला ए   ग़ज़ल' दीवाने  यही तो रखते है !

मंगलवार, 19 जुलाई 2011

माँ


सब कुछ बदल रहा है सिवाय माँ के ....




-दुनिया की नज़रों में

बेटा बड़ा हो रहा है /

माँ की नज़र में तो

उसका कपड़ा छोटा हो रहा है !

माँ के आशीष का विस्तार इन पंक्तियों में प्रकट करने का प्रयास कर रहा हूँ -

-घर से दूर भी

घर का पता

साथ चल रहा है /

घर में माँ के हाथों

जलाया दीप

जल रहा है !

बच्चों की सलामती के लिए माँ क्या कुछ नहीं करती ,एक बानगी -

-मेरी खेरियत की

दुआ माँ करती है /

आज भी पकाई पहली रोटी

गाय को अर्पण करती है !



माँ का आशीष सभी ब्लोगर्स पर सदेव बरसता रहे इन्ही शुभकामनाओं के साथ ........

सुधीर

गुरुवार, 28 अप्रैल 2011

ठिठोली

-कहते है
 नेताजी
 हमें 'मत' दो ..
 इच्छा है आपकी 
 मत दो !

-कहते है 
 वह 'सरक' गया है ..
 इच्छा  है आपकी 
 उसकी जगह 
 आप ले लो !

-कहते है
 वह गम 'गलत'
 कर रहा है ..
 चलो अच्छा है 
 कुछ तो सही 
 कर रहा है ! 

-कहते है 
 उसका 'बाजू वाली ' से
 चक्कर चल रहा है ..
 इच्छा है आपकी
 बिना बाजू वाली से मिला दो !

-कहते है
 बहुत 'पकाते' है ..
 इच्छा है आपकी 
 अच्छे शेफ से मिला दो !

   

मंगलवार, 19 अप्रैल 2011

राहें

तुमने नदी की 
रवानी चुनी 
मैंने कुंए का
ठहरा पानी ...
तुम अपना
विस्तार देखते रहे
और मैं गहराई ...
तुम सागर में
समाहित हो
निश्चित ही
विशालता का
वरण कर लोगे
पर खारेपन के साथ ...
और मैं
गहराई से
धराजल को पा
नूतनता का
वरण कर लूँगा
मीठेपन के साथ ...
फिर ....
...........

कँही व्योम में
प्रियवर
हम होंगे साथ
जंहा एक कदम तुम्हारा
एक कदम मेरा होगा ..
और फैसला होगा
अपने हाथ .....!

रविवार, 13 फ़रवरी 2011

दुक्की


मैं
प्रेम और समर्पण
के मध्य की
रिक्तता को
पुरता गया
और ..........
'खाली' होता गया !


वो
मेरी खेरियत
को लेकर
फिक्रमंद सा
दिखता है /
उसका तरकश
अभी भरा नहीं है !

बुधवार, 9 फ़रवरी 2011

वसंत एवं पतझड़ की प्रतिक दो भाव संक्षिप्तियाँ प्रस्तुत है -

             1

उसके आँचल
    में सिमटी
    सारी तितलियाँ
    उड़ पड़ती है  /
    जब मेरे 
    ख्यालों में
    वो खिल पड़ती है !

           2 

    उसके खतों से 
    अक्षर उड़ चले..... 
    इबादत का 
    सामान 
    अब कहाँ ...........? 

मंगलवार, 8 फ़रवरी 2011

दो कड्वें सच

किसी के
गिरेबान में
झांककर
उसकी नंगाई
उजागर मत करना /
हदबंदी करना
सियासतदारों को 
खूब आता है .....!


वो मौत से
पहले
जल गया /
दुनियांदारी
सीखने में
इतनी देर
अब ठीक नहीं ......!