शनिवार, 31 जुलाई 2010

खाली पेट के चूहें

खाली पेट के चूहें
भला चिथड़ो में
कहाँ कैद हो पाते
उछलकर बाहर
आ ही जाते है /
तथाकथित निगह-बानों
के शिकार बनते ही
इन चूहों की दुम
काट दी जाती है /
बाज़ार में बिकते फिर
इन्हें देर नहीं लगती /
पिन्जरेदारों को भी
इन चूहों की
तलाश रहती है /
पकडे जाने पर
बनती खबरे
पढ़ी जाती है /
खाली पेट के चूहें
पैदा करने वालो की
खबर कहाँ बनती
और पढ़ी जाती है !

गुरुवार, 29 जुलाई 2010

 

मौका मिला तो ...........


लिख दू
ककहरा
स्लेट पर बेटे की
कुछ स्वप्न दू /
बताऊ कि दुनिया
अच्छी ही है !
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हो जाऊ थोड़ा रूमानी
गजरा दू प्रेयसी को /
कानों में उसके कह दू
प्रेम होता है
भौतिकता  से परे !
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                                        धुंए से जलती
                                         आँखों को
                                         खाली पेट /
                                         चिंतातुर मानस को
                                         समझाऊ
                                         रोटी महकती भी है !
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बढती बिटिया को
दू स्नेहाशीष /
और समझाऊ
संस्कृति साथ लेकर
सभ्यता की दौड़ में
शामिल होना
कतई बुरा नहीं है !
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मंगलवार, 27 जुलाई 2010


                                              प्रबंधन की रेसिपी
जी हाँ प्रबंधन की रेसिपी सीखें आपकी अपनी  पत्नी [श्रीमतीजी] से ! प्रबंधन को बड़ी बड़ी पोथियों में खोजने के बाद भी अधूरापन ! जानिए कैसे पत्नी अपने कार्यो एवं उत्तरदायित्वो का निर्वहन बड़ी बखूबी सरल एवं सहज अंदाज में अपने प्रबंधन के माध्यम से संपन्न करती है -
इन्वेंट्री कण्ट्रोल के विविध सिध्धांत क्रियान्वयन स्तर पर भारी भरकम प्रतीत होते है ! इस मायने में पत्नी के प्रबंधन को परखिये ! सोचिये पत्नी द्वारा घर में शक्कर ख़त्म होने एवं लाने की बात आपसे कही जाती है ! आज आप ऑफिस से लेट है सो टाल दिया , दुसरे दिन एटीएम् तक नहीं पहुचे , अगला दिन आपकी थकान एवं आलस्य ! चौथे दिन शक्कर घर में आई ! इन बीते दिनों में आपको फीकी चाय पीना पड़ी हो शायद ऐसा  नहीं हुआ ! आपको यथा समय शक्करमिश्रित चाय मिलती रही ! पत्नीमुख से शायद ही आपने सुना हो की शक्कर ख़त्म हो गयी , मैंने आपको लाने  के लिए कहा था सो आज फीकी चाय पीजिये !
देखा आपने वार्निंग अलार्म कब बजाना है श्रीमती बखूबी जानती है ! कारखानों में भी माल डिलीवर होने में लगने वाले समय को ध्यान में रख कर इन्वेंटरी का प्रबंध करना होता है अर्थात माल का न्यूनतम  स्तर [ सेफ्टी स्टॉक ]मेंटेन करना होता है ! अन्यथा माल प्राप्ति तक स्थाई लागतों को बढावा व उत्पादन स्थगित !
आप पुरुष प्रधान समाज में रहते है ! पुरुष होने का एवं शारीरिक रूप से बलिष्ठ होने का अहम् आप बगल में साथ लिए चलते है , बुरा मत मानियेगा ! देखें कैसे श्रीमती आपके अहम् को संतुष्ट करती है - घर में ऊँची सेल्फ पर रखे तेल के पीपे को उतारने के लिए वह आपको पुकारती है ! क्या  कहती है जरा गौर फरमाईये -" सुनिए जी  आप जरा अपने लम्बे हाथों से तेल का पीपा तो निकाल  दीजिये !" आप कितने ही महत्वपूर्ण कार्य में मशगुल क्यों न हो आपकी भुजाएँ  फरफराती है और आप जाकर तुरंत पीपा नीचे उतार  देते है ! उचीं सेल्फ से अन्य साधनों के प्रयोग से तेल का पीपा निकालना वह भी जानती है शायद आपकी अनुपस्थिति में वह ऐसा करती भी होंगी ! अपने बॉस के सुपीरियर  होने के अहम् की संतुष्टि के लिए आपको क्या करना है आप समझ गए होंगे !
आईये देखें श्रीमती कैसे अभिप्रेरण के सिध्धांत सहजता से लागु करती है - बेटा चलना सीख रहा है ! एक कदम ..दो कदम ..... धम्म ! गिर कर रोने लगता है ! श्रीमतीजी - अरे ..अरे राजा बेटा गिर गया  जमीं को धाप देते हुए कहती है हमारे बेटे को गिरा दिया ! और बेटे को पुनः चलने के लिए तत्पर करती है ! इस सरल सहज सिध्धांत को अपने अधीनस्थों के लिए आरक्षित रखिये ! देखिये आप कैसे उनके चहेते बन जाते है !
आजकल व्यवसाय के आतंरिक एवं बाहय पक्षकारों के प्रति सामजिक उत्तरदायित्व के निर्वहन की चर्चा की जाती है ! श्रीमतियाँ भी परिवार रूपी संगठन में ऐसे उत्तरदायित्वो को सदियों से पूरा करती आई है ! घर में पके पकवान का स्वाद लेने से कोई सदस्य अछूता नहीं रहता , यहाँ तक की पड़ोस वाली भाभी भी ! मेहमान आ जाये तो ख़ुशी की बात !
संगठन के विस्तार एवं ख्याति के लिए जरा इस रेसिपी को भी आजमा कर देखिये !

शुक्रवार, 23 जुलाई 2010

            गीत बदरियाँ हुए बेगाने

                    - भींगा न आँचल
                      भींगा काजल
                      चुप्प हुए है बोल ....
                      दिखता सागर
                      सकोरे में
                      सावन मेरे
                      अब तो गठरी खोल !

- कंठ व्याकुल
  गुमसुम बदरियाँ
  बजरिया उड़ाती धूल....
  वसुधा प्यासी
  अब जाने कैसे
  खिले फूल  !

                      - नाँव कागज की
                        चले कैसे ?
                        सोचे 'बाला' आज....
                        बीज रखा हाथों में
                        कैसे बजे
                        अब साज  !

गुरुवार, 15 जुलाई 2010

पिता की कलम से ''बिटिया''

आँगन खिला
पारिजात
झरता है फुल
जब
खिलखिलाती है
बिटिया .....
अंजुरी भर
पत्नी अविलम्ब
अर्पण करती
कृष्ण को
अपने सदा /
दीप जला
कहती दादी
फूल पाँखुरी है
स्वर्ग से आई /
दादा भी तो
आँगन बुहार
रोज सींचते
पारिजात /
नवल -धवल सा
खुद को पाया
मैंने सुरभि पा !