शनिवार, 13 नवंबर 2010

    श्री श्री ब्लॉगनाथ महाराज को
          अर्पित स्तुति छंद

 -   जेहि विधि होय हित मोरा 
     नाथ तुम्हें वो करना है !
     थोड़ा ही सही
     लिफ्ट तुम्हें ब्लॉग मेरा करना है !!

-    हे कलम -शब्दों के स्वामी
     मुझे भरोसा तेरा है !
     अच्छी -बुरी सब रचनाओं का
     एक तु ही तो डेरा है !!

-   'बढ़िया है' 'अच्छी है'
    रचनाओं पर हे नाथ
    टिप्पणी मिली कई बार !
    भिन्न मिले टिप्पणी
    बस  यही मुझको दरकार !!

-   सौंप दिया तुझको शब्द-धन
    फिर क्यूं चिंता फिकर करू !
    दिल का हाल सुने दिलवाला
    बस यही तो मैं अरज करू !!

गुरुवार, 11 नवंबर 2010

तंग गलियों के
छोटे कमरों में
पसरे सपने
जीवन के कतिपय संकेत -
छोंक की गंध
और
कुलबुलाते धुंए
से बाबस्ता हो
बाहर आ पसरते है !
छोंक की गंध
गलियों के मुहाने पर
खुलते
ऊँची इमारतों से घिरे
बड़े चौराहों की
तथाकथिक सु-गंध में
कहीं तिरोहित हो
जाती है !
कुलबुलाता धुआं भी
समय के काँधे पर
बेताली प्रश्न -
क्या चौराहें 'सुरसा'
होते है ?
पटक कहीं अद्रश्य हो
जाता है !
अनुत्तरित प्रश्न जो
आज भी लटका है
कल की तरह /
हे जन-नायक
क्या मुझे ही यह
नज़र आता है ..............?

रविवार, 7 नवंबर 2010

तीन फिरकियाँ
       १  

मुफलिसी का
आलम
कुछ इस तरह हुआ
पैबन्दों से
पोशिदा जिस्म
फैशन  हुआ !

       २ 

क्यों कर
मेरे इश्क का
इश्तहार
हर जुबां से हुआ
मुख़तसर सी ही
तो बात थी
उनका मेरे कूचे से
गुज़र कर जाना  !

       ३ 

वो इंतिहा 
सितम की 
कुछ इस तरह 
कर गया 
लुट कर चैन रातों का 
ख्वाबों से भी 
मरहूम कर गया !

शुक्रवार, 5 नवंबर 2010

रोजनामचा
कागज़ की कश्तियाँ ,
टूटे खिलोने ,
अपूरित ज़िदे
और
कुछ अबोध ख्वाब.....
मेरा यही सामान
मेरे रोजनामचा में
दर्ज होता है .....
मुआ बुढ़ापा तो
बाबस्ता होता नहीं
और
सामान बचपन का
अलहदा कभी होता नहीं !

बुधवार, 3 नवंबर 2010











मेरे दीप
जलाने से
जब 'माँ'
रोशन होती है /
मेरी दिवाली होती है !
सभी पाठकों को दीपोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ ........!

मंगलवार, 2 नवंबर 2010

निशा की नादानी
तकिये के नीचे
दबाई मेरी
चिंताओं का
अपहरण कर
सिरहाने
रख दिया
एक ख्वाब
चुपके से उसने /
नादान है
जानती नहीं थी
लोटकर सुबह
फिर आएँगी
अपहृत चिंताएं
ख्वाबों को लीलकर !