आगाज़...
थोड़ी खट्टी थोड़ी मीठी गुफ्तगू !
बुधवार, 9 जून 2010
खिलता है
पलाश
जब सिमटती है
निशा
सूरज की
बांहों में /
मुस्काता है
पलाश
जब वादा लेता है
सावन से
फिर जल्द आने का /
उसने भी रखा है
हाथ पर मेरे
चुपके से
पलाश /
अब के सावन
कहीं
देर न कर दे
आने में ....
सोच यही
कुछ डरता हूँ !
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