सोमवार, 31 मई 2010

शराफत जो
पसरती थी
आँगनो में
दिखाई देती है
वो अब
इश्तेहारो में ..
बाँग अब
भोर की
मुर्गा देता नहीं
क्यों ? अजान भी
कानो को
सुनाई देती नहीं /
वेदों की ऋचाओ से
खेरियत तलाशते
संत भी
कर बेठे इश्तेहार
कोई नई बात नहीं /
मजलिस में
मातबर
दिखाई देता नहीं ..
मौजूं है जो
अनासिर में
लीन हो जायेगा
कोई क्यों
याद करता नहीं ....!

रविवार, 30 मई 2010

वो तेरे हाथों की
मेहंदी की खुशबु
वो रूमानी शामें
जहाँ सांसे
महका करती थी
तेरी बातों की
चंचल तितलियाँ
जब मन बगिया में
थिरका करती थी
कितने अच्छे दिन थे
जब तुम मेरे साथ थी ॥
वो शानों पर तेरे
थिरकते मेरे विचार
और वो मुहं मोड़कर
शर्माना तेरा ,
वो तेरा रूठना
और मेरा
कागज पर
मन उकेरकर
मनाना
रूठने मनाने सी
कविता सी
तुम्हारा मुझे
नज़र होना /
कितने अच्छे दिन थे
जब तुम मेरे साथ थी !

शनिवार, 29 मई 2010

सिलसिला कही उकताहटपैदा करता है ,जबकि आगाज नूतनता को समाविष्ट किये होता है !
आगाज आशा है , जोश की रवानी है , विराम को चुनौती है !
अर्पण कर
शब्दों को
आगाज
कोई करता हूँ ....
कर शब्दाभिषेक
अश्रुजल से
मन मानस को
पुनीत करता हूँ
आगाज
कोई करता हूँ .....
शब्द बने सुमन /
महक हो
चन्दन सी /
तुलसीदल सा
हो रस
सोच यही
आगाज
कोई करता हूँ ....!