शनिवार, 29 मई 2010

सिलसिला कही उकताहटपैदा करता है ,जबकि आगाज नूतनता को समाविष्ट किये होता है !
आगाज आशा है , जोश की रवानी है , विराम को चुनौती है !
अर्पण कर
शब्दों को
आगाज
कोई करता हूँ ....
कर शब्दाभिषेक
अश्रुजल से
मन मानस को
पुनीत करता हूँ
आगाज
कोई करता हूँ .....
शब्द बने सुमन /
महक हो
चन्दन सी /
तुलसीदल सा
हो रस
सोच यही
आगाज
कोई करता हूँ ....!

3 टिप्‍पणियां:

अमिताभ श्रीवास्तव ने कहा…

ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है. हम तो यही चाहते थे कि आपके शब्दों का भी सब रस ले सकें। रचना के शुभारम्भ का आगाज़ ही जब सुन्दर है तो भविष्य की कल्पना की जा सकती है। बस लिखते रहें, शब्दों के सफर को आगे बढाते रहें। हमारी शुभकामनायें

बेनामी ने कहा…

all the best for new blog!!

Unknown ने कहा…

Chalo ab kuch accha sunne ko mila Badhai ho