रविवार, 13 फ़रवरी 2011

दुक्की


मैं
प्रेम और समर्पण
के मध्य की
रिक्तता को
पुरता गया
और ..........
'खाली' होता गया !


वो
मेरी खेरियत
को लेकर
फिक्रमंद सा
दिखता है /
उसका तरकश
अभी भरा नहीं है !