रविवार, 30 मई 2010

वो तेरे हाथों की
मेहंदी की खुशबु
वो रूमानी शामें
जहाँ सांसे
महका करती थी
तेरी बातों की
चंचल तितलियाँ
जब मन बगिया में
थिरका करती थी
कितने अच्छे दिन थे
जब तुम मेरे साथ थी ॥
वो शानों पर तेरे
थिरकते मेरे विचार
और वो मुहं मोड़कर
शर्माना तेरा ,
वो तेरा रूठना
और मेरा
कागज पर
मन उकेरकर
मनाना
रूठने मनाने सी
कविता सी
तुम्हारा मुझे
नज़र होना /
कितने अच्छे दिन थे
जब तुम मेरे साथ थी !