सोमवार, 27 सितंबर 2010

पैने हुए खंजर झुठ के
सत्य का मातम अब कहाँ !

स्याह हुए पत्तें दरख्तों के
कपोतों का डेरा अब कहाँ !

अश्कों के सोते हुए खुश्क
रुदालियाँ बेगानी अब कहाँ !

ख्यालात थे खुद के समर्पण के
बगेर दाम कोई तोलता अब कहाँ !

चिराग है मुअस्सर  रोशनी के लिए
मंदिर मस्जिद एक होते अब कहाँ !

सुना दुनियादार बन बेठा है तु
सजल आखों में दिखता तु ही ,दुनिया अब कहाँ !

उम्मीद का धीर लिए 'सुधीर', याद रख
आफ़ताब बगेर महताब को रोशनी कहाँ !