शनिवार, 2 अक्तूबर 2010

मेरे सूबे की साँझ
स्वर परिंदे
उतरे आसमाँ से
गीत संजा
मुखर हुए /
सुर्ख हुए मुख
यूँ  गोरी के
चाँद जेसे
चस्पा हुए /
अजान कहीं शंखनाद
का गुंजन
महकी यूँ गोधूलि ऐसे
घर -घर जेसे
'प्रयाग' हुए /
कहीं अनुभव चौपालों के
कहीं मोड़
जवानी के
आबाद हुए यूँ ऐसे
जेसे चलती फिरती
किताब हुए /
पैजनियाँ की
खनक सा
छलका पानी
पनघट पर यूँ
गीत तरुणाई
प्रखर हुए /
चस्पा चस्पा
बिखरी मिटटी
जेसे चन्दन की
'आब' हुई/
तान कजरी की
झूले की परवान हुई /
कुछ इस तरह देखो
मेरे सूबे की साँझ हुई !