बुधवार, 9 जून 2010

खिलता है
पलाश
जब सिमटती है
निशा
सूरज की
बांहों में /
मुस्काता है
पलाश
जब वादा लेता है
सावन से
फिर जल्द आने का /
उसने भी रखा है 
हाथ पर मेरे 
चुपके से
पलाश /
अब के सावन
कहीं
देर न कर दे
आने में ....
सोच यही
कुछ डरता हूँ !

1 टिप्पणी:

अमिताभ श्रीवास्तव ने कहा…

वाह सुधीर भाई..मज़ा आ गया पढने में..। अजी इतने दिनो% तक क्यों गुमसुम बैठे रहे? लिखते हो, कामर्स का व्यक्ति भी लिखता है..खूब लिखता है भाई..., सोच डरो मत..न सावन देर करेगा न उनके आने में देर होगी...।


- अब अपनी बात- इधर काफी परेशान हूं..सो ऐसएमएस आदि के उत्तर दे नहीं सका, आजीविका में स्पीडब्रेकर आ गये हैं सो गाडी धीमी गति से ही नही बल्कि फिलहाल रुक सी गई है। मज़ा है यह अलग किस्म का। खैर..फिर उठूंगा, दौडूंगा, भागूंगा..तय है..। सफलता कदम चूमेगी..विश्वास है। मगर तब तक उलझने भी, संघर्ष भी।