शनिवार, 20 अगस्त 2011

रंग ए फितरत

दिल को मेरे वो क्या संभालेंगे   
मुहाने पर दिल जो अपना  रखते है !

डोर  रिश्तों की  वो क्या थामेंगे
हाथों में जो छुरी रखते है !

'दामनगीर' हो , रखे सिर अब किस काँधे पर
यहाँ तो हर सिर की नीलामी रखते है !

कर ले दिल्लगी खुद  -खुद से
'मतला ए   ग़ज़ल' दीवाने  यही तो रखते है !

कोई टिप्पणी नहीं: