रंग ए फितरत
दिल को मेरे वो क्या संभालेंगे
मुहाने पर दिल जो अपना रखते है !
डोर रिश्तों की वो क्या थामेंगे
हाथों में जो छुरी रखते है !
'दामनगीर' हो , रखे सिर अब किस काँधे पर
यहाँ तो हर सिर की नीलामी रखते है !
कर ले दिल्लगी खुद -खुद से
'मतला ए ग़ज़ल' दीवाने यही तो रखते है !
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