शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2012

कुछ हो ऐसा भी ........ 

बिखरे मेहँदी 
तन पर 
बिखरे तुलसी 
आँगन जेसे  !

हो मुक़द्दस 
मन मानस 
गुलाब चढ़े 
शिव पर जेसे  !

रात बुहार 
प्रकट हो सूरज 
बसंत सोलह की 
तरूणाई जेसे  !

गीत समर्पण 
हो मुखर 
कल कल बहती 
गंगा जेसे  !

हाथों में हो 
हाथ सबल 
पल पल बने 
प्रयाग जेसे  !


1 टिप्पणी:

Dr. Ajay K Gupta ने कहा…

SHABDON NE SAMA BAANDH DIYA.BEHATREEN ABHIVYAKTI