रविवार, 6 जून 2010

रामदुलारो को समर्पित पंक्तिया
रामदुलारी का मायके जाना
है सुख इसमें हमने माना!!
है इसमें स्वछंदता का बोध
ले ले पुनः आजादी का भोग !!
मुश्किल से मिलता है यह सबाब
जब न देना कोई हिसाब !!
न आटे दाल से हो दो चार
न मानस उपजे बजट विचार !!
उठो , नहा लो , खा लो  के बाधक नहीं प्रश्न
यार मेरे अब मना ले जश्न !!
फरमाइशे भी हुई स्थगित
अब बना ले खुद को मीत !!
काल है अल्प यह मेरे यारा
तलाशोगे मौका तुम दोबारा !!
अनिकेतन में है मौज का आलम
पर याद जरूर रखियो बालम /
याद सताती है तुम्हारी , फुनवा पर जरूर कहना !
आफ्टरआल होती है , रामदुलारी घर का गहना !!

1 टिप्पणी:

अमिताभ श्रीवास्तव ने कहा…

राम दुलारी का मायके जाना
और आपका ऐसे खुश होना
माशाअल्लाज क्या प्रेम करते हैं आप भाई...\ मैं तो यह मानता हूं जब कोई बन्दा ऐसे गुन गाये तब यह समझा जाये कि वो अपनी विरह वेदना को किसी तरह रीलीज करना चाह रहा है...