शुक्रवार, 5 नवंबर 2010

रोजनामचा
कागज़ की कश्तियाँ ,
टूटे खिलोने ,
अपूरित ज़िदे
और
कुछ अबोध ख्वाब.....
मेरा यही सामान
मेरे रोजनामचा में
दर्ज होता है .....
मुआ बुढ़ापा तो
बाबस्ता होता नहीं
और
सामान बचपन का
अलहदा कभी होता नहीं !

2 टिप्‍पणियां:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

बचपन वापस भी नहीं मिलता...

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत ही संवेदनशील ... बचपन का सामान और खुच यादें ... बस यही तो रहता है बुढापे में इंसान के पास .... गज़ब का लिखा है ...