सोमवार, 21 जून 2010

अपने सभी संघर्षरत मित्रों का संघर्ष सहज हो सके इस हेतु कुछ पंक्तियाँ गढ़ रहा हूँ !


दिवा स्वेद से
रंजित
न हो /
स्वप्न सलोने
होते नहीं ...
कर्म पथ
मर्म मन /
आँखों में जब
हो न अर्जुन /
स्वप्न सलोने
होते नहीं ...
कर्म पथ ही है
बंधू
क़दमों से विराम
की दुरी ...
विकल्पहीन
संकल्प न हो /
स्वप्न सलोने
होते नहीं !

2 टिप्‍पणियां:

shubhangi ने कहा…

दिवा स्वेद से
रंजित
न हो /
स्वप्न सलोने
होते नहीं ...
bahut khub gagar me sagar!
aise hi likhte rahe.

स्वाति ने कहा…

bahut achhi aur prerak rachna...