मंगलवार, 2 नवंबर 2010

निशा की नादानी
तकिये के नीचे
दबाई मेरी
चिंताओं का
अपहरण कर
सिरहाने
रख दिया
एक ख्वाब
चुपके से उसने /
नादान है
जानती नहीं थी
लोटकर सुबह
फिर आएँगी
अपहृत चिंताएं
ख्वाबों को लीलकर !

1 टिप्पणी:

सुधीर महाजन ने कहा…

SABHI BLOGGER BANDHUO KO DIPAWALI KI SHUBHKAMNAE....!