मंगलवार, 27 जुलाई 2010


                                              प्रबंधन की रेसिपी
जी हाँ प्रबंधन की रेसिपी सीखें आपकी अपनी  पत्नी [श्रीमतीजी] से ! प्रबंधन को बड़ी बड़ी पोथियों में खोजने के बाद भी अधूरापन ! जानिए कैसे पत्नी अपने कार्यो एवं उत्तरदायित्वो का निर्वहन बड़ी बखूबी सरल एवं सहज अंदाज में अपने प्रबंधन के माध्यम से संपन्न करती है -
इन्वेंट्री कण्ट्रोल के विविध सिध्धांत क्रियान्वयन स्तर पर भारी भरकम प्रतीत होते है ! इस मायने में पत्नी के प्रबंधन को परखिये ! सोचिये पत्नी द्वारा घर में शक्कर ख़त्म होने एवं लाने की बात आपसे कही जाती है ! आज आप ऑफिस से लेट है सो टाल दिया , दुसरे दिन एटीएम् तक नहीं पहुचे , अगला दिन आपकी थकान एवं आलस्य ! चौथे दिन शक्कर घर में आई ! इन बीते दिनों में आपको फीकी चाय पीना पड़ी हो शायद ऐसा  नहीं हुआ ! आपको यथा समय शक्करमिश्रित चाय मिलती रही ! पत्नीमुख से शायद ही आपने सुना हो की शक्कर ख़त्म हो गयी , मैंने आपको लाने  के लिए कहा था सो आज फीकी चाय पीजिये !
देखा आपने वार्निंग अलार्म कब बजाना है श्रीमती बखूबी जानती है ! कारखानों में भी माल डिलीवर होने में लगने वाले समय को ध्यान में रख कर इन्वेंटरी का प्रबंध करना होता है अर्थात माल का न्यूनतम  स्तर [ सेफ्टी स्टॉक ]मेंटेन करना होता है ! अन्यथा माल प्राप्ति तक स्थाई लागतों को बढावा व उत्पादन स्थगित !
आप पुरुष प्रधान समाज में रहते है ! पुरुष होने का एवं शारीरिक रूप से बलिष्ठ होने का अहम् आप बगल में साथ लिए चलते है , बुरा मत मानियेगा ! देखें कैसे श्रीमती आपके अहम् को संतुष्ट करती है - घर में ऊँची सेल्फ पर रखे तेल के पीपे को उतारने के लिए वह आपको पुकारती है ! क्या  कहती है जरा गौर फरमाईये -" सुनिए जी  आप जरा अपने लम्बे हाथों से तेल का पीपा तो निकाल  दीजिये !" आप कितने ही महत्वपूर्ण कार्य में मशगुल क्यों न हो आपकी भुजाएँ  फरफराती है और आप जाकर तुरंत पीपा नीचे उतार  देते है ! उचीं सेल्फ से अन्य साधनों के प्रयोग से तेल का पीपा निकालना वह भी जानती है शायद आपकी अनुपस्थिति में वह ऐसा करती भी होंगी ! अपने बॉस के सुपीरियर  होने के अहम् की संतुष्टि के लिए आपको क्या करना है आप समझ गए होंगे !
आईये देखें श्रीमती कैसे अभिप्रेरण के सिध्धांत सहजता से लागु करती है - बेटा चलना सीख रहा है ! एक कदम ..दो कदम ..... धम्म ! गिर कर रोने लगता है ! श्रीमतीजी - अरे ..अरे राजा बेटा गिर गया  जमीं को धाप देते हुए कहती है हमारे बेटे को गिरा दिया ! और बेटे को पुनः चलने के लिए तत्पर करती है ! इस सरल सहज सिध्धांत को अपने अधीनस्थों के लिए आरक्षित रखिये ! देखिये आप कैसे उनके चहेते बन जाते है !
आजकल व्यवसाय के आतंरिक एवं बाहय पक्षकारों के प्रति सामजिक उत्तरदायित्व के निर्वहन की चर्चा की जाती है ! श्रीमतियाँ भी परिवार रूपी संगठन में ऐसे उत्तरदायित्वो को सदियों से पूरा करती आई है ! घर में पके पकवान का स्वाद लेने से कोई सदस्य अछूता नहीं रहता , यहाँ तक की पड़ोस वाली भाभी भी ! मेहमान आ जाये तो ख़ुशी की बात !
संगठन के विस्तार एवं ख्याति के लिए जरा इस रेसिपी को भी आजमा कर देखिये !

2 टिप्‍पणियां:

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

अरे महाजन जी! आप त मैनेजमेंट गुरू से मिलवा दिए.. हर घर में मौजूद गुरू... बहुत सहज हास्य, जैसे घरेलू सम्बंध... बहुत अच्छा लगा!

अमिताभ श्रीवास्तव ने कहा…

यही तो है जो आपमें है। सोच और विचार की विधा जब रचनात्मक रूप में निखर सामने आती है तो धरातलीय चेहरा व्यंग्य के रूप में जीवन की सच्चाई से अवगत करा जाता है। महिलायें माहिर प्रबन्धक होती हैं। यह खूबी ईश्वर ने उन्हे ही दी है और इसलिये क्योंकि उनमे ही शक्ति होती है। वैसे शक्तिपूजा की बात जब भी आई है तो देवी की पूजा ही की जाती है। या जब हम भूमि की बात करें तो जो हमे धरतल देती है वो भी स्त्री ही। मुझे हमेशा से इस बात ने सोच में रखा है कि पुरुषप्रधान समाज कैसे बना? जबकि पुरुष का अस्तित्व तक महिला के आधार पर निर्भर करता है। अज़ीब है यह। मैनेजमेंट का एक बहुत अच्छा उदाहरण है महिला। जीवन का मैनेजमेंट्। तभी तो प्रकृति भी स्त्री लिंग में है। बहुत अच्छी तरह समझाया है आपने। व्यंग्य की यह खूबी होती है कि पते की बात पर चोट करता हुआ वो लिखा जाता है। आपकी इस विधा के पहली बार दर्शन हुए हैं। चाहता हूं समय समय पर लिखते रहें।