कुछ हो ऐसा भी ........
बिखरे मेहँदी
तन पर
बिखरे तुलसी
आँगन जेसे !
हो मुक़द्दस
मन मानस
गुलाब चढ़े
शिव पर जेसे !
रात बुहार
प्रकट हो सूरज
बसंत सोलह की
तरूणाई जेसे !
गीत समर्पण
हो मुखर
कल कल बहती
गंगा जेसे !
हाथों में हो
हाथ सबल
पल पल बने
प्रयाग जेसे !